एक शख्स, जो कि टीचर है.. गांव में एक तंबूरे (वाद्ययंत्र) की आवाज सुनता है.. उस आवाज के पीछे जाता है, और बस फिर उसके सुरों में लीन हो जाता है. कबीर को मालवी में गाना शुरू करता है, पैसे लालच ईवेंट मैनेजमेंट से दूर बस कबीर की बाणी को पहुंचाता है.. और एक दिन पद्मश्री तक हो जाता है. ये नाम है प्रहलाद टिपाणिया. पहली बार जब कबीर को गाना शुरू किया तो सपने में नहीं सोचा था कि इतना प्यार मिलेगा. लोग कबीर का रूप उमें देखने लगेंगे.
प्रहलाद टिपाणिया के भजनों और उनके साक्षात्कार को आप यहां सुन/देख सकते हैं.
ये कहानी आपके लिए इसलिए कि आपके आसपास भी ऐसे ही टिपाणिया हैं, बस हम उन्हें वो तरजीह नहीं देते. ऐसे हुनमंदों को पहचानिए, हमें बताइए, हम देंगे इन्हें प्लेटफार्म.
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